वायु मुद्रा: तर्जनी अंगुली को अंगुष्टो के मूल में लगाकर अंगूठे को
हल्का दबाकर रखने से यह वायु मुद्रा बनती है (तर्जनी अंगुली को अंगुष्टो से
दबाकर भी ये मुद्रा बनती है)शेष तीनो अंगुलियों को सीधा रखनी चाहिए।
लाभ: इसके अभ्यास से समस्त प्रकार के वायु सम्बन्धी रोग -
गठिया,संधिवात,आर्थराइटिस,पक्षाघात,कंपवात,साइटका,घुटने के दर्द तथा गैस
(Rheumatism, gout, arthritis, paralysis, Kanpwat, Saitka, knee pain and
gas) बनना आदि रोग दूर होते है ,गर्दन एवं रीढ़ के दर्द में लाभ मिलता है।